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न्यूयार्क/फिलाडेलफिया/वाशिंगटन: क्या डोनाल्ड ट्रंप दोबारा सत्ता में आएंगे तो अमेरिका में रह रहे भारतीयों को अपने भविष्य के प्रति सशंकित होना चाहिए? क्या ट्रंप भारत से आने वाले लोगों के लिए नाैकरी की संभावना को कम करेंगे? क्या वे वीजा नीति को कठोर करेंगे ताकि भारतीयों को यहां काम करने में दिक्कत हो? क्या इसके लिए वे पूर्व में बने नियमों में बदलाव भी करेंगे? बुधवार को अमेरिका में चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद यहां रहे भारतीयों के बीच सबसे अधिक चर्चा इसी बात को लेकर थी। एनबीटी ने कई लोगों से बात की तो इस मुद्दे पर मिश्रित राय दिखी लेकिन सबने माना कि इस मोर्चे पर कुछ बड़ा बदलाव ट्रंप जरूर करेंगे।
न्यूयार्क में एक लीडिंग आईटी कंपनी में पिछले दस सालों से काम कर रहे अशोक दुबे नतीजे से दु:खी हैं। उनका कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप जिन वादों के साथ सत्ता में आए वह जरूर चिंता करने वाली हैं। उत्तर प्रदेश के लखनऊ से यहां 2011 में आने वाले अशोक दुबे कहते हैं कि उनके दो बच्चे हैं जिनमें एक अभी पिछले साल ही कॉलेज में गये हैं और एक हाई स्कूल में है। शिक्षा का खर्च बहुत है। हाल में बाकी खर्च भी बढ़ा है। उनकी पत्नी भी पिछले सात साल से काम कर रही हैं।
लेकिन, अब चिंतित हैं कि शायद ट्रंप तुरंत वह उस फैसले को पलट दे जिसमें एच1बी वीजा पर काम आने वाले लोगों को अपने पति या पत्नी को भी यहां नौकरी करने की अनुमति दी गयी थी। इसी फैसले के बाद ही उनकी पत्नी को नौकरी मिली थी। उनके डर के पीछे वजह भी है। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार में पूर्व के ऐसे तमाम फैसलों को पलटने की बात कही है जिससे कहीं न कहीं अमेरिकी लोगों की नौकरी की संभावना कम हुई। साथ ही वह उनके पहले टर्म में लिये गये कुछ फैसले भी इस आशंका को बल देता है कि वे अगले साल प्रभार लेने के बाद वीजा नीति को लेकर फिर कुछ कठोर फैसला ले सकते हैं।
वहीं वाशिंगटन में हावर्ड यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस में फैकलटी मनोहर विश्वास ने कहा कि बात सिर्फ भारतीय की नहीं है,आने वाले समय में अमेरिका में क्या होगा किसी को पता नहीं है। इस बार ट्रंप सिर्फ राष्ट्रपति नहीं है बल्कि सीनेट में बहुमत मिलने के कारण हर तरह के फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने कहा कि जो ट्रंप की राजनीति को नजदीक से समझते हैं वे उनके बारे में पहले से कोई भी अनुमान लगाने की जोखिम नहीं लेंगे।
न्यूयॉर्क के कोलंबिया यूनिर्विसिटी में मेडिसीन की पढ़ाई करने त्रेहन मजूमदार ने कहा कि अब वे अपनी पढ़ाई तो दो साल में पूरी कर लेंगे लेकिन विश्व में कहीं भी अपने लिये काम कर लेंगे लेकिन उन्हें अपने छोटे भाई को लेकर चिंता है जो अगले साल कालेज में दाखिले की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि अब उन्हें अपने छोटे भाई के भविष्य के लिए सोचना होगा। उनके अनुसार अब यहां कंपिनयां भारतीय को नौकरी लेने के प्रति थोड़े सतर्क हो सकते हैं।
हालांकि अमेरिका के लीडिंग पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक निक वाशिंगटन के अनुसार ऐसा शायद नहीं हो। उन्होंने कहा कि यह सही है कि ट्रंप ऐसे वादों के साथ सत्ता में आए हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप पर ऐसे सख्त फैसलों लेने का दबाव भी होगा कि वे दूसरे देशों पर आने वाले लोगों को काबू में लाएं और उनकी नौकरी की संभावना को भी कम करें लेकिन वहीं दूसरी जगह तमाम बड़ी कंपनियां उन्हें ऐसा नहीं करने देगी। वे इन कंपनियों के समर्थन के बदौलत भी सत्ता में आए हैं। उनका कहना था कि भारतीयों को यहां नौकरी देने से कंपनियों अपने वेतन मद पर बहुत पैसा बचाती है,ऐसे में वे इस मोर्चे पर किसी तरह बदलाव नहीं चाहेंगे।
वहीं रिपब्लिकलन लीडर लिसा मे ने एनबीटी से कहा कि किसी भी देश की पहली और सबसे बड़ी प्राथमिकता उसे अपने देश के लोगों की चिंता होनी चाहिए,उनकी नौकरी के लिए कोशिश होनी चाहिए। अगर इसके लिए कुछ नियमों में बदलाव होंगे तो वह होने चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे किसी देश के विरुद्ध नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चूंकि ट्रंप के भारत से बेहतर संबंध है,वहां के लोगों को अधिक चिंता नहीं करनी चहिए।
कुल मिलाकर ट्रंप के सत्ता में आने के बाद एक तरह से बेचैनी,उत्सुकता और सवालों का दौर पूरे अमेरिका में देखा जा रहा है। इस बात पर सभी सहमत हैं कि ट्रंप इस बार बड़े फैसले लेंगे लेकिन इसका असर कैसा होगा इसे लेकर जरूर अलग-अलग मत हैं। हालांकि अधिकतर लोग इस बात से सहमत दिखते हें कि भले ट्रंप कोई फैसला नहीं लें जिससे अमेरिका की ग्लोबल लीडर और विशाल लोकतंत्र और इंक्लूसिव समाज की छवि पर कोई असर हो।
न्यूयार्क में एक लीडिंग आईटी कंपनी में पिछले दस सालों से काम कर रहे अशोक दुबे नतीजे से दु:खी हैं। उनका कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप जिन वादों के साथ सत्ता में आए वह जरूर चिंता करने वाली हैं। उत्तर प्रदेश के लखनऊ से यहां 2011 में आने वाले अशोक दुबे कहते हैं कि उनके दो बच्चे हैं जिनमें एक अभी पिछले साल ही कॉलेज में गये हैं और एक हाई स्कूल में है। शिक्षा का खर्च बहुत है। हाल में बाकी खर्च भी बढ़ा है। उनकी पत्नी भी पिछले सात साल से काम कर रही हैं।
एच1बी वीजा को बदल सकते हैं ट्रंप
लेकिन, अब चिंतित हैं कि शायद ट्रंप तुरंत वह उस फैसले को पलट दे जिसमें एच1बी वीजा पर काम आने वाले लोगों को अपने पति या पत्नी को भी यहां नौकरी करने की अनुमति दी गयी थी। इसी फैसले के बाद ही उनकी पत्नी को नौकरी मिली थी। उनके डर के पीछे वजह भी है। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार में पूर्व के ऐसे तमाम फैसलों को पलटने की बात कही है जिससे कहीं न कहीं अमेरिकी लोगों की नौकरी की संभावना कम हुई। साथ ही वह उनके पहले टर्म में लिये गये कुछ फैसले भी इस आशंका को बल देता है कि वे अगले साल प्रभार लेने के बाद वीजा नीति को लेकर फिर कुछ कठोर फैसला ले सकते हैं।
अमेरिका के भविष्य को लेकर भी चिंता
वहीं वाशिंगटन में हावर्ड यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस में फैकलटी मनोहर विश्वास ने कहा कि बात सिर्फ भारतीय की नहीं है,आने वाले समय में अमेरिका में क्या होगा किसी को पता नहीं है। इस बार ट्रंप सिर्फ राष्ट्रपति नहीं है बल्कि सीनेट में बहुमत मिलने के कारण हर तरह के फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। उन्होंने कहा कि जो ट्रंप की राजनीति को नजदीक से समझते हैं वे उनके बारे में पहले से कोई भी अनुमान लगाने की जोखिम नहीं लेंगे।
भारतीयों के नौकरी पर लगेगा ग्रहण?
न्यूयॉर्क के कोलंबिया यूनिर्विसिटी में मेडिसीन की पढ़ाई करने त्रेहन मजूमदार ने कहा कि अब वे अपनी पढ़ाई तो दो साल में पूरी कर लेंगे लेकिन विश्व में कहीं भी अपने लिये काम कर लेंगे लेकिन उन्हें अपने छोटे भाई को लेकर चिंता है जो अगले साल कालेज में दाखिले की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि अब उन्हें अपने छोटे भाई के भविष्य के लिए सोचना होगा। उनके अनुसार अब यहां कंपिनयां भारतीय को नौकरी लेने के प्रति थोड़े सतर्क हो सकते हैं।
अमेरिकी विशेषज्ञों की क्या है राय
हालांकि अमेरिका के लीडिंग पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक निक वाशिंगटन के अनुसार ऐसा शायद नहीं हो। उन्होंने कहा कि यह सही है कि ट्रंप ऐसे वादों के साथ सत्ता में आए हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप पर ऐसे सख्त फैसलों लेने का दबाव भी होगा कि वे दूसरे देशों पर आने वाले लोगों को काबू में लाएं और उनकी नौकरी की संभावना को भी कम करें लेकिन वहीं दूसरी जगह तमाम बड़ी कंपनियां उन्हें ऐसा नहीं करने देगी। वे इन कंपनियों के समर्थन के बदौलत भी सत्ता में आए हैं। उनका कहना था कि भारतीयों को यहां नौकरी देने से कंपनियों अपने वेतन मद पर बहुत पैसा बचाती है,ऐसे में वे इस मोर्चे पर किसी तरह बदलाव नहीं चाहेंगे।
रिपब्लिकन नेता ने आशंकाओं को खारिज किया
वहीं रिपब्लिकलन लीडर लिसा मे ने एनबीटी से कहा कि किसी भी देश की पहली और सबसे बड़ी प्राथमिकता उसे अपने देश के लोगों की चिंता होनी चाहिए,उनकी नौकरी के लिए कोशिश होनी चाहिए। अगर इसके लिए कुछ नियमों में बदलाव होंगे तो वह होने चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे किसी देश के विरुद्ध नहीं माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चूंकि ट्रंप के भारत से बेहतर संबंध है,वहां के लोगों को अधिक चिंता नहीं करनी चहिए।
ट्रंप के सत्ता में आने से बढ़ी बेचैनी
कुल मिलाकर ट्रंप के सत्ता में आने के बाद एक तरह से बेचैनी,उत्सुकता और सवालों का दौर पूरे अमेरिका में देखा जा रहा है। इस बात पर सभी सहमत हैं कि ट्रंप इस बार बड़े फैसले लेंगे लेकिन इसका असर कैसा होगा इसे लेकर जरूर अलग-अलग मत हैं। हालांकि अधिकतर लोग इस बात से सहमत दिखते हें कि भले ट्रंप कोई फैसला नहीं लें जिससे अमेरिका की ग्लोबल लीडर और विशाल लोकतंत्र और इंक्लूसिव समाज की छवि पर कोई असर हो।
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